हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, अय्याम ए फ़ातिमा और इमामों की मां, सिद्दीका-ए-कुबरा, रसूल की जान फातिमा ज़हरा (स) की शहादत के मौके पर करगिल लद्दाख में जमात-ए-उलमा इस्ना अशरिया की देखरेख में 13 जमादी उल-अव्वल से 3 जमादी उस-सानी तक 20 दिनों तक हौज़ा इल्मिया इस्ना अशरिया करगिल में मातमी महफिलें आयोजित होंगी। 3 जमादी उस-सानी को जुलूस-ए-अज़ा का आयोजन होगा और जमात-ए-उलमा इस्ना अशरिया करगिल के अध्यक्ष हज़रत हुज़तुल इस्लाम वल मुस्लिमीन शेख नाज़िर महदी मुहम्मदी के भाषण के साथ फातिमा के दिनों का समापन होगा।
इन मातमी महफिलों में करगिल जिले के प्रसिद्ध उलमा और ख़तीब बोलेंगे और सिद्दीका-ए-शहीदा फातिमा ज़हरा (स) की ज़िंदगी और शहादत के अलग-अलग पहलुओं पर विस्तार से बात करेंगे।
फातिमा के दिनों की शुरुआत में 13 जमादी उस-सानी 1447 हिजरी को हौज़ा इल्मिया इस्ना अशरिया करगिल में पहली मातमी महफिल हुई, जिसमें जिले के अलग-अलग इलाकों और आसपास के इलाकों से बड़ी संख्या में अज़ादारों ने हिस्सा लिया और इमाम ज़माना (अ) की ख़िदमत में उनकी जद माजिदा की शहादत पर दिल दहला देने वाली तस्लियाँ दीं।

मातमी महफिल में बोलते हुए हुज़तुल इस्लाम वल मुस्लिमीन शेख मुहम्मद हसन मुक़द्दस ने फातिमा ज़हरा (स) को महिलाओं के लिए एक नमूना बताया और महिलाओं को सलाह दी कि वे शहज़ादी-ए-कौनैन फातिमा ज़हरा (स) के दिखाए गए रास्ते पर चलें और अपने चरित्र से अपनी क़ौम को बेहतर भविष्य दें, क्योंकि किसी भी क़ौम का भविष्य उसकी माताओं के हाथों में होता है।
शेख हसन मुक़द्दस ने आगे कहा कि फातिमा ज़हरा (स) सिर्फ़ महिलाओं के लिए सिद्दीका नहीं हैं, बल्कि सारी मख़लूक़ के लिए सिद्दीका हैं। ज़हरा (स) की पाक ज़िंदगी का अध्ययन करके हम सबको फायदा उठाना चाहिए और ज़हरा (स) के क़दमों पर चलकर ज़िंदगी गुज़ारनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि फातिमा ज़हरा (स) की फ़ज़ीलत और मन्ज़िलत को जितना हो सके बताना चाहिए और हमारी आने वाली पीढ़ियों को बचपन से ही फातिमा ज़हरा (स) की पाक ज़िंदगी के बारे में बताने की ज़रूरत है, ताकि हमारी पीढ़ियां रसूल-ए-गरामी इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफा (स) और अमीरुल मुमिनीन हज़रत इमाम अली इब्न अबू तालिब (अ) के बाद फातिमा ज़हरा (स) पर उम्मत की तरफ़ से किए गए ज़ुल्म और तशद्दुद के बारे में जागरूक हो सकें।

शेख हसन मुक़द्दस ने कहा कि हमें फातिमा ज़हरा (स) की मज़लूमियत को बताने में कोई कमी नहीं करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि कुरआन पाक की आयत "कुल ला अस्अलुकुम अलैहि अज्रन इल्लल मवद्दत फ़िल कुरबा" में अल्लाह ने हमें रिसालत का इनाम इस शर्त पर दिया है कि हम अहल-ए-बैत अत्हार (अ) के साथ मोहब्बत का इज़हार करें और उन पाक ज़ातों को अपनी ज़िंदगी के सभी मामलों में राहनुमा और नमूना बनाएं।

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